Thursday, November 2, 2017

बचपन


भोला-सा बचपन , भला-सा बचपन,
नटखट-सा, शैतानियों भरा वो बचपन
वो मम्मी की डाँट और पापा का प्यार,
बस चार दीवारें ही थी जब संसार,
वो एक पल में हसना और दूजे में रोना,
वो कम्बल तान जी भर के सोना,
जी चाहे जो वो माँग लेना बेझिझक,
ना मिले तो छीन लेना जताकर के हक़,
वो मम्मी की सेंडल पहन ख़ुद को बड़ा समझना,
और पापा के जूते छिपा छुप-छुप के हँसना,
वो खिलौनो से बातें और खाने से अनबन,
आजकल ज़्यादा ही याद आता है बचपन,
सच था वो या था झूठा-सा सपना,
या शायद इस दिल की बेसुध सी कल्पना।