Friday, June 9, 2023

त्याग

 


मायका तो कबका छोड़ आई थी,
मातृभूमि से जुड़ी डोर भी टूट गयी,
मातृत्व के मोह में आज,
भारतीय नागरिकता भी छूट गई |
सब कुछ खोकर जो पाया है, 
एक प्रमाणपत्र कागज़ का है,
पर जो छूट गया, जो टूट गया, 
मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा है |
बनके लहू जो बहते हैं,
ये ऐसे दिल के रिश्ते हैं,
एक दस्तावेज़ से बदल जाएँ,
नहीं जीवन-बीमे की आसान-सी किश्तें हैं |
पर बिना परिश्रम कहाँ-कभी,
किसी सच्चे रिश्ते का पौंधा बढ़ता है,
धैर्य,अनुराग, त्याग, लगन से 
उसे सींचना पड़ता है |
जो देखी, सुनी और पढ़ी थीं,
उन बातों का ही अनुसरण किया,
कल पत्नी और बहु बनने को,
एक बेटी ने मायका छोड़ा था,
आज बच्चो की परछाई बनने को,
एक माँ ने मातृभूमि का परित्याग किया | 

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