Sunday, March 24, 2024

भय बिनु होइ न प्रीति

 


पिछले कुछ वर्षों में होली-दीवाली से पहले पड़ने वाले शनिवार या मंगलवार को घर में सुंदरकांड पढ़ने का नियम सा बना लिया है| हुनमान जी से मेरा लगाव शादी से पहले से ही रहा है, कॉलेज से भी कई बार दोस्तों के साथ कनाट प्लेस के हनुमान मंदिर कई बार जाती थी | एक अलग ही सुकून और विश्वास मिलता था वहां जाकर | विवाह के बाद भी संतान प्राप्ति के लिए कई बार हनुमान जी का आह्वाहन किया कभी दिए जलाकर और कभी केवल मष्तिष्क में| 

सुंदरकांड भी कई बार पढ़ी होगी पर, कल पढ़ते हुए पहली बार तुलसी दास जी की कही गयी इस बात पर ध्यान गया 

विनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीति।

बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीति।।

लगा जैसे जीवन का सार मिल गया| तुलसी दास जी कहते हैं, कि जब मर्यादा पुर्शोत्तम श्रीराम को समुद्र ने तीन दिन तक प्रार्थना करने पर भी रास्ता नहीं दिया तो उन्होंने क्रोध में आकर समुद्र को जलाने के लिए तीर चलाए , तब समुद्र को भय से उन्हें रास्ता देना पड़ा| 

मैंने सरलार्थ निकाला और समझा, कि आपके जीवन में जिन्हें आपसे प्रेम है उन्हें आपसे बिछड़ने, आपको ख़ोने का डर भी अवश्य होगा, और जिन्हें ये डर नहीं है, उनके लिए आप कभी प्रेम और सौहाद्र के पात्र थे ही नहीं, केवल एक गिनती हैं उनके परिचितों की सूची में ,आपके रहने या न रहने से उनके जीवन में कोई बदलाव नहीं आएगा 😊

जब तीन दिन में प्रभु श्रीराम अपना धैर्य त्याग सकते हैं, तो आप और हम तो केवल इंसान हैं 🙃 जो लोग अपने लिए जी रहे हैं, उनके लिए जीकर अपने जीवन को मामूली और स्वयं को उनसे कम न बनाएं या समझें |