Friday, August 8, 2025

Rakshabandhan 2025

 


मेरे प्रिय भाई-बहन, 

यूँ तो हमने बचपन से यह

रेशम की डोरी का पर्व मनाया है, 

और तुम दोनों ने दिल से सदैव 

इस रिश्ते का मान बढ़ाया है,

पर ज़िंदगी के ताने-बाने में, 

रोज़मर्रा की उलझने सुलझाने में,

तुम्हें ‘thank you’ कहा हो याद नहीं, 

पर भूली हूँ तुम्हारा योगदान कभी ये भी सत्य नहीं, 

ठीक जैसे दोस्ती में no sorry, no thankyou 

जानी पहचानी कहावत है,

घरवालों को sorry या thankyou कहना, 

कहाँ हिंदुस्तानी रवायत है,

थोड़ा western culture में ढलते हैं, 

चलो आज इस रवायत को बदलते हैं, 

तो thankyou तुम दोनों को, 

हर उस बात के लिए जो तुम यूँ ही मान गए 

और thankyou तुम दोनों को, 

हर उस जस्बात के लिए जो तुम बिन बोले ही जान गए 

और  thankyou तुम दोनों को 

मेरी हर ज़रूरत कहने से पहले समझ जाने का 

एक बढ़ा सा thankyou तुम दोनों का 

इतने साल बिना thankyou मेरा साथ निभाने का 

और हाँ लगे हाथ sorry तुम दोनों को 

इतने साल छोटे से thankyou का महत्व ना समझ पाने का 💞

Saturday, June 28, 2025

मम्मी-पापा शादी की सालगिरह की शुभकामनाएं

 


लूँ जन्म अगर दोबारा कभी, इस धरा पर यदि फिर मनुष्य बन आऊँ मैं,
चाहूँ कोख मिले वही फिरसे,गोद-गोत्र,घर-परिवार वही फिर पाऊँ मैं, आता है याद जब कभी भी मुझे, अपना प्यारा-सा बचपन,
ले आता है लबों पर मुस्कान, पर कर देता आँखों को नम,
जहाँ प्यार और विश्वास मिला, मुझे अपने भाई-बहन से ज़्यादा,
वहीं डाँट और पिटाई खाई दोनों ने मेरे हिस्से की आधा-आधा, 
बस खाओ-पियो, पढ़ो और सो जाओ, दिनचर्या वो कितनी प्यारी थी,
यही महसूस कराया मम्मी-पापा ने, जैसे मैं तो जग में सबसे न्यारी थी, एक तरफ़ मम्मी ने रोका घर के कामों में हाथ बटाने से,
वहीं पापा ने आत्मविश्वास जगाया, बोला कभी किसी से ना घबराने से,
हमेशा मान दिया, सम्मान दिया मेरी इच्छाओं और इरादों को,
सिखाया सच की राह पर चलना, पूरा करना दिए वादों को,
नित्य रंग बदलती इस दुनिया में जाने इतनी हिम्मत मम्मी-पापा  कहाँ से लाते थे,
“रोना ना किसी भी हाल में, जो होगा देखा जाएगा”, कितनी आसानी से कह जाते थे, 
डटी रही हूँ, डिगी नहीं हूँ, उस मार्ग से जो उन्होंने तब दिखलाया था,
सिखा रही हूँ बच्चों को अपने, वही जो, उन्होंने बरसो पहले मुझको सिखलाया था, 
माँ-पा हाथ आप दोनों का सदा रहे हमारे सर पर, बस इतनी-सी ख्वाहिश है,
मानी है हर बात आपने मेरी, मान लोगे ना ये जो मेरी छोटी-सी फ़रमाहिश है 🙏

Saturday, June 21, 2025

हादसे

 


कुछ हादसे सिखाने नहीं आते…

कुछ हादसे सुलझाने आते हैं,

उन उलझनों को, जिनकी इंतहाँ नहीं…

कुछ हादसे दिखाने आते हैं,

वो रास्ते, जो हमने चुने ही नहीं…

कुछ हादसे समझाने आते हैं,

नादान मन, जो समझता ही नहीं…

कुछ हादसे याद दिलाने आते हैं,

उन लम्हों की, जिन्हें हमने जिया ही नहीं…

कुछ हादसे महसूस कराने आते हैं 

अहमियत उनकी, जो हमारे साथ नहीं…

कुछ हादसे बिखराने आते हैं 

खुश्बू, उन रिश्तों की जिन्हें हम कभी भूले ही नहीं… 

कुछ हादसे दिलासा दे जाते हैं,

की ज़िंदगी के सफ़र में हम, इतने तन्हा भी नहीं…

Sunday, March 24, 2024

भय बिनु होइ न प्रीति

 


पिछले कुछ वर्षों में होली-दीवाली से पहले पड़ने वाले शनिवार या मंगलवार को घर में सुंदरकांड पढ़ने का नियम सा बना लिया है| हुनमान जी से मेरा लगाव शादी से पहले से ही रहा है, कॉलेज से भी कई बार दोस्तों के साथ कनाट प्लेस के हनुमान मंदिर कई बार जाती थी | एक अलग ही सुकून और विश्वास मिलता था वहां जाकर | विवाह के बाद भी संतान प्राप्ति के लिए कई बार हनुमान जी का आह्वाहन किया कभी दिए जलाकर और कभी केवल मष्तिष्क में| 

सुंदरकांड भी कई बार पढ़ी होगी पर, कल पढ़ते हुए पहली बार तुलसी दास जी की कही गयी इस बात पर ध्यान गया 

विनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीति।

बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीति।।

लगा जैसे जीवन का सार मिल गया| तुलसी दास जी कहते हैं, कि जब मर्यादा पुर्शोत्तम श्रीराम को समुद्र ने तीन दिन तक प्रार्थना करने पर भी रास्ता नहीं दिया तो उन्होंने क्रोध में आकर समुद्र को जलाने के लिए तीर चलाए , तब समुद्र को भय से उन्हें रास्ता देना पड़ा| 

मैंने सरलार्थ निकाला और समझा, कि आपके जीवन में जिन्हें आपसे प्रेम है उन्हें आपसे बिछड़ने, आपको ख़ोने का डर भी अवश्य होगा, और जिन्हें ये डर नहीं है, उनके लिए आप कभी प्रेम और सौहाद्र के पात्र थे ही नहीं, केवल एक गिनती हैं उनके परिचितों की सूची में ,आपके रहने या न रहने से उनके जीवन में कोई बदलाव नहीं आएगा 😊

जब तीन दिन में प्रभु श्रीराम अपना धैर्य त्याग सकते हैं, तो आप और हम तो केवल इंसान हैं 🙃 जो लोग अपने लिए जी रहे हैं, उनके लिए जीकर अपने जीवन को मामूली और स्वयं को उनसे कम न बनाएं या समझें | 

Wednesday, February 7, 2024

🙏अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो... ना दीजो... 🙏


बचपन बीता, जवानी गुज़री, 
बात मगर मैं समझ ना पाई,
लड़कों से चलती है दुनिया, 
लड़की तो दुनिया पर केवल बोझ है भाई ,
जाने क्या सोचे बैठी थी,
जाने क्या समझे बैठी थी,  
जो ममता की खाली झोली भरने को, 
हाथ जोड़ भगवान से बेटियां मांग बैठी,
मान ली जब ईश्वर ने इच्छा,
किस्मत पर अपनी बढ़ा थी ऐंठी,
पाप भयो मुझ अनजानी से, 
पढ़ी-लिखी मुर्ख, दीवानी से,  
उम्र ढली, बालों में सफेदी भी पूरी चढ़ आई, 
पर मंदबुद्धि ही रही मैं, अक्ल मुझ में ज़रा न आई ,
सम्मान और समानाधिकार 
की लकीर हमेशा पीटती रही,
संतान के लिए दुनिया 
से लड़-भिड़ना मानती थी सही, 
झूठी कसमें -वादों, बातों-इरादों से भरी,
 इस दुनिया की, इतनी सी ही है सच्चाई 
चुप रहने, सब सहने, में ही है नारी की भलाई , 
दुःख छिपाकर, झूठी हंसी लबों पर लाओ,  
शब्द एक न कहो, बस हाँ में सर हिलाओ, 
वरना, याद रखना साथ तुम्हारा, 
देनेवाला इस दुनिया में कोई नहीं,
देख-जान ये नैना बरसे जाने कितने दिन,
और जाने कितनी रातें मैं सोयी नहीं,
पर, अब जान गयी हूँ, मान गयी हूँ, 
नारी हूँ, बेबस-अबला हूँ मैं,
कमज़ोर बढ़ी,अकेली कुछ न कर पाऊंगी,
वादे किये खुदा से जो थे, 
खुदसे कभी न दोहराऊंगी, 
आइना मगर देखूंगी कैसे, 
नज़रे खुद से आजीवन नहीं मिला पाऊंगी, 
क्यूँकि बच्चों को अपने ये सीखाऊँ , 
वो निर्लज्जता कहाँ से लाऊँगी, 
भूल हुई माँ बनकर, जीवन चक्रव्यूह में,
दो जीवों को बेवजह ही उलझा दिया, 
क्षमाप्रार्थी हूँ उनकी उम्र भर
जन्म जिन्हें देकर मानो मैंने कोई गुनाह किया, 
बस अब एक इतना उपकार, 
ओ मेरे प्रभु तू मुझपर और कीजो,
अगले जनम, मोहे बिटिया ना कीजो, ना दीजो  🙏🙏