Monday, September 27, 2010

उत्तराखंडियों ने अमरीका में मचाई अपनी संस्कृति की धूम

वैश्वीकरण ने दुनिया भर के लोगों के संपर्क और आपसी व्यवहार के तरीके को निश्चित रूप से बदल दिया है | हालांकि, वैश्वीकरण दुनिया और लोगों को करीब लाया लेकिन साथ ही इसने धीमी गति से विकासशील देशों में प्राचीन सांस्कृतिक विरासत के लुप्त होने का भी आह्वाहन किया | सभी विकासशील देशों की तरह, पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित और आकर्षित भारतीय युवा को भी प्राचीन भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य रूपों से अधिक ‘रॉक’ और ‘हिप हॉप’ पसंद हैं , उन्हें घर पर बने भोजन के बदले 'फास्ट फूड' भाता है और वे लस्सी या छास के बजाय 'कोला ' को चुनते हैं| सीधे और साधारण सब्दों में कहें तो आज की शब्दावली में ये 'कूल' हैं |

भारत की विविध सांस्कृतिक विरासत तो भारतीय टेलीविजन पर रियलिटी शो तक ही सीमित हो गयी लगती है| हमने पश्चिमी/ अमरीकी संकृति को अपने जीवन का एक हिस्सा तो बना लिया लेकिन शायद हमें अपना सांस्कृतिक आधार ज्ञात भी नहीं | पश्चिमी तौर-तरीके और लहजा हासिल करने की दौड़ में हमने पश्चिमी देशों से अपनी सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण रखने को सीखना जरूरी नहीं समझा और इस विरासत को अपनी आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने के उनके प्रयासों को अनदेखा किया | सीखने और अनदेखा करने में से, जिन चीजों को अनदेखा करना हम अपने देश में रहकर चुनते हैं; शायद मातृभूमि से बहुत दूर पश्चिम में घर बसाने आये प्रवासी भारतीय सबसे पहले वही सीख लेते हैं|

पलभर के लिए अपनी आँखें बंद कर भारत से बाहर दुनिया के किसी भी हिस्से के बारे में सोचिये, उच्च संभावना है कि राष्ट्रीय के साथ ही राजकीय स्तर पर भारतीय मूल के लोगों की दुनिया के हर हिस्से में संघ पाए जा सकते हैं| ये समूह नाकेवल साथ मिलकर भारतीय त्यौहार के जश्न मनाने का माध्यम बने हैं, पर साथ ही अपनी अगली पीढ़ी को अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के बारे में जागरूक करने का मंच प्रदान करते हैं| जो प्रयास भारत में माता-पिता अपने बच्चों पर 'अंग्रेजी' सीखाने में करते हैं, दुनिया के अन्य भागों में वही प्रयास प्रवासी भारतीयों द्वारा अपने बच्चों को अपनी मूल भाषा को बोलने, लिखने और समझने में सक्षम बनाने में लगाया जा रहा है|

सभी सांस्कृतिक और पैतृक पृष्ठभूमि के भारतीयों की तरह, उत्तराखंड (हिमालय और उत्तर प्रदेश के आसपास के जिलों से 9 नवंबर 2000 को बनाया नव राज्य) के मूल निवासी प्रवासी भारतीयों ने भी भारत में छूट गए अपने समाज की कमी को पूरा करने हेतु "उत्तराखंड एसोसिएशन" और "उत्तराखंड सांस्कृतिक एसोसिएशन" जैसे संगठनों का गठन संयुक्त अरब अमीरात और कनाडा में किया है | संस्कृति के अवशेष के टुकड़ों का संरक्षण कर अपनी पीढ़ियों को पारित करने की इच्छा से अमरीका में बसे प्रवासी उत्तराखंडियों ने "उत्तराखंड एसोसिएशन आफ नार्थ अमेरिका (ऊना)" नामक संघ का गठन संयुक्त राज्य अमरीका में किया| अपनी स्थापना के बाद से ही संघ प्रति वर्ष एक वार्षिक सम्मेलन का आयोजन करता आया है, इस सम्मेलन का उद्देश्य प्रवासी उत्तराखंडियों को सामाजिक आदान प्रदान का एक मंच देने के साथ ही उत्तराखंड की जातीय पहचान के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना भी है | संयुक्त राज्य अमरीका के हर कोने से एसोसिएशन के सदस्य अपने परिवार के साथ इस वार्षिक उत्सव में उपस्थित रहने का प्रयास करते हैं | उनका ये मानना है की इससे उनके बच्चों को अपनी जड़ों को महसूस कर उनके करीब जाने का अवसर मिलता है| सांस्कृतिक कार्यक्रम इन वार्षिक सम्मेलनों का सबसे श्रेष्ठ भाग होते है और उत्तराखंड की विशिष्ट सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं | अमरीका में पैदा और पले बडे बच्चों को गढ़वाली एव कुमाऊनी गानों को गाते और उनपर नाचते देख आश्चर्य के साथ गर्व की अनुभूति भी होती है|

उम्र से एवं दिल से युवा प्रवासी उत्तराखंडी हमेशा अपने पैतृक कहानियों को इस वार्षिक उत्सव के मंच पर लाने के नए तरीके सोचते और खोजते रहते हैं | जुलाई 2008 में ऊना के वार्षिक सम्मेलन के दौरान ऊना के सदस्यों ने मिलकर पवित्र 'नंदा देवी राज जात यात्रा' का सफलतापूर्वक प्रदर्शन एक लोककथा के रूप में किया |








इस प्रदर्शन के सभी प्रतिभागियों ने मंच पर इस सदियों पुरानी परंपरा का अनुकरण करने के अनुभव का भरपूर आनंद लिया | उस समय इस कार्यक्रम के लिए हो रही तैयारी ने बौस्टन के न्यू इंग्लैंड क्षेत्र के सभी उत्तराखंडी परिवारों को एकजूट करने का महत्वपूर्ण काम किया था | इन परिवारों से 45 प्रतिभागियों (जिनमे तीन साल की उम्र के बच्चे भी शामिल थे) ने तीन महीने तक हर शनिवार और रविवार को एकत्रित होकर तैयारी की | ‘नंदा देवी राज जात यात्रा' उस समय अमरीका में प्रस्तुत की गयी सबसे विस्तृत उत्तराखंडी पेशकश थी जिसे गैर भारतीय मूल के अतिथियों के लिए वर्गों में अंग्रेजी में अनुवादित किया गया था |

नंदा देवी राज जात यात्रा' की सफलता, पहुंच और प्रभाव से प्रेरित होकर ऊना के सदस्यों ने गोल-ज्यू (उत्तराखंड के पौराणिक और ऐतिहासिक देवता) की सबसे लोकप्रिय कहानी को सितम्बर 2010 के वार्षिक सम्मेलन के मंच पर लाने का फैसला किया | गोल-ज्यू की पौराणिक कथा को 15 लोगों ( 9 वर्षीय अमरीका में पैदा और पले बडे बच्चे से लेकर साठ वर्षीय प्रवासी उत्तराखंडी ऊना सदस्य ) के संयुक्त प्रयासों, उत्साह एवं सक्रिय भागीदारी से " गोलू देवता - द गौड औफ़ जस्टिस (न्यायकारी देवता) " को मंच पर लाया गया |








शुरुआत में कठिन और असंभव लग रही सोच को सामूहिक प्रयास और प्रत्येक सदस्य द्वारा की गयी कड़ी मेहनत द्वारा यथार्थ किया जा सका | यह आधे घंटे का नाटकीय प्रदर्शन सभी उपस्थित अथितियों को प्रभावित कर 2010 की सांस्कृतिक शाम का आकर्षण बन गया| भारतीय एव विदेशी मूल के सभी विशिष्ट अतिथियों को सामान रूप से शामिल करने की क्षमता की वजह से इसने स्पष्ट रूप से जुलाई 2008 में दर्शायी गयी 'नंदा देवी राज जात यात्रा ' के प्रदर्शन की सफलता को पीछे छोड़ दिया | पूरी कहानी जो की उत्तराखण्ड की भाषा (कुमाऊंनी) में अभिनीत की जा रही थी, को साथ ही बड़े पर्दे पर अंग्रेजी उपशीर्षक के माध्यम से दर्शाया जा रहा था जिससे उपस्थित सभी अथिति उसे भली भांति समझ पा रहे थे | इस पूरे प्रदर्शन से भाव विभोर हो ऊना के एक सदस्य जो संयुक्त राष्ट्र (यू एन) में कार्यरत हैं ने संयुक्त राष्ट्र के न्यूयॉर्क स्थित मुख्यालय पर " गोलू देवता - द गौड औफ़ जस्टिस (न्यायकारी देवता) " के प्रदर्शन को दोहराने की योजना साझा की है | आज, टीम स्वयं पर गर्व और गोल-ज्यू के आशीर्वाद को महसूस करती है |

आज भी जब ऊना के सदस्य शायद ये सोच रहे हो की आगे क्या और कैसे प्रदर्शित किया जाए हमें लगता है , उत्तराखंड से मीलों दूर , समान विचारधारा वाले लोगों को साथ लाकर एक टीम का हिस्सा बनाना सहज तो नहीं रहा होगा | किन्तु , कहा जाता है की ' दूरियाँ लोगों को नज़दीक लाती हैं 'और शायद इन सच्चे उत्तराखंडियों के लिए यही सत्य है क्यूंकि अपनी 'देवभूमि' से वर्तमान दूरी के कारण आज ये खुद को अपने प्रदेश और वहां की जड़ों से और ज्यादा करीब पाते हैं | धीरे- धीरे फीके पड़ रहे सांस्कृतिक मूल्यों के वर्तमान रुझान के कारण अमरीका में बसे ये प्रवासी भारतीय पहले की तुलना में आज खुद को अपनी पारंपरिक और सांस्कृतिक विरासत के प्रति ज्यादा जिम्मेदार महसूस करते हैं| अपनी मातृभूमि और घर से दूर " अमरीका: अवसरों के देश" में स्वयं के लिए एक घर बनाने के साथ साथ इन्होने अपने लिए एक " मिनी उत्तराखंड " का भी निर्माण कर लिया है |

2 comments:

Shailesh Upreti said...

Cool....nice writeup Bindia..did you also participate in one of these,,,one of the lady in last pic resembles you.

By the way wonderful efforts...hope every Uttarakhandi likes it.

Thanks for sharing a nice writeup.

Bindia Bhagat said...

BTW were you a part of it :P looks like u were...the man with green PAGDEE resembles you... :P :P