Tuesday, July 26, 2011

क्या है UANA? कौन है UANA?


क्या है UANA? कौन है UANA?
लगता है कुछ सुना-सुना!!
27 फ़रवरी 2007 की वो रात....
पहुंचा जब मैं अमरीका लिए बस कुछ सपने साथ...
ढेरों उम्मीदें, अनेकों उमंगें मन में लिए आया घर से मीलों दूर...
सच है..चंद ही दिनों में होने लगी हरेक आशा चूर-चूर,
नया देश, अनजान चेहरे, चारों तरफ बस थी बर्फ ही बर्फ...
कहने को भी पास ना था किसी अपने का स्पर्श...
Coffee Maker में मैगी खाकर...
फ़ोन पर दोस्तों से बतियाकर...
कब तक और कितना अपना मन बहलाता...
ना मिलता UANA का साथ तो शायद भारत लौट जाता...
UANA ने मिलवाया कितनो से...
UANA ने जुड़वाया कितनो से...
कुछ सपना-सा, कुछ अपना-सा, परिवार यहाँ भी था बनने लगा...
भाकुनी, जोशी, पन्त, नेगी, शर्मा, पाण्डेय..सभी से था UANA का संसार रचा बसा...
पर जहाँ चार बर्तन होते हैं, सुना है आवाज़ वहां आ ही जाती है...
दुर्भाग्यवश कभी कभी छोटी से छोटी आवाज़ भी बड़ा घाव दे जाती है...
एक ही वर्ष में UANA के दो टुकड़े होते देखा...
शायद कुछ लोगों के आपसी मनमुटाव ने खींच दी सभी के बीच में रेखा...
जैसे उत्तर प्रदेश से उत्तराँचल बना और उत्तराँचल से उत्तराखंड...
वैसे ही भारत से मीलों दूर भी हुए देवभूमि के प्रवासी खंड-खंड...
देखा, सुना और समझा है, समय के साथ बदलना प्रकृति का दस्तूर है...
जाने किस से किसकी हुई लड़ाई, पर बटने पर हर पहाड़ी मजबूर है...
एक हिस्से में हम आये और जो हमें प्यारे थे...
पर दूजे में भी जो गए, वो भी तो अपने ही सारे थे..
पलक झपकते बँट गया UANA का भरा पूरा परिवार...
जो ना बँट सका वो लौट गया घर, निकाल दिल से UANA का विचार...
क्यूँ हुए दो हिस्से इसके, मैं आज भी समझ ना पाता हूँ...
कुछ जानी कुछ अनजानी-सी इस दुविधा में, कुछ और उलझ-सा जाता हूँ...
अपने देश, अपनी मिट्टी से दूर आकर परदेश में जब लोग मिलते हैं...
खुश होते हैं, "मैं पहाड़ी तू भी पहाड़ी" कहकर एक दूजे से जुड़ते हैं ..
खूब हँसी ठिठोली होती है, नाचना गाना भी होता है..
फिर एक मेरा और दूजा पराया कैसे हुआ, ये सोच कर दिल रोता है...
अपना जो दिखाते हैं, क्यूँ वो अपनाते नहीं..
भीतर-बाहर का अंतर क्यूँ लड़ने से पहले दिखाते नहीं...
साथ और विश्वास में इर्ष्या और अहंकार कहाँ से आ जाता है...
क्या ज्यादा ऊँचा बोलने वाले को ज्यादा स्वाभिमानी समझा जाता है...
कब चन्द लोगों के अभिमान के आगे संघ का संविधान छोटा पड़ जाता है?
मन में जो आई है एक बात, वो संजू पहाड़ी बताता है...
यूँ ही अगर हम टूटते रहे...
अपने अपनों से रूठते रहे...
तो PANA (पहाड़ी) , GANA (गड़वाली), KANA (कुमाउनी), BANA (ब्राह्मण), TANA (ठाकुर)..जैसे जाने कितने संघ बन जायेंगे...
देवभूमि यूँ ही कराहती रहेगी, हम बस तू-तू मैं-मैं करते रह जायेंगे...
कहने वाले तो ये भी कहते हैं, " नाम में क्या रखा है?"...
पर हमने तो उत्तराँचल और उत्तराखंड के पीछे हंगामा कर रखा है...
"ये पद मेरा, वो पद तेरा, मानोगे तो वापस मिल जाते हैं..."
पहाड़ के लिए कुछ करें ना करें, पहाड़ के नाम पर जुड़ जाते है...
सोचता हूँ... अब एक और नयी UANA का बिगुल बजाया जाए...
शंखनाद के साथ UPRETI ASSOCIATION OF NORTH AMERICA का आह्वाहन किया जाए...
नाम पर ना जाइये, इसमें हर पहाड़ी को प्राथमिकता दी जाएगी...
पर पहाड़ के प्रति प्रेम की पुष्टि सबसे पहले की जाएगी...
पहाड़ के लिए कुछ सोचा, कुछ किया नहीं, तो संघ का बोलो मतलब क्या...
मातृभूमि के क़र्ज़ का एक हिस्सा भी वापस ना दिया, तो पहाड़ी कहलाने का मकसद क्या...


----जय देवभूमि उत्तराखंड
पहाड़ प्रेमी (संजू पहाड़ी)


JFYI : UANA stands for Uttaranchal Association of North America  and
Uttarakhand Association of North America

No comments: