Tuesday, May 19, 2020

गर बच गए तो आनेवाली पुष्तों को शायद ये सिखलाएँगे...

सड़कें सुनसान, शहर विरान...
आज़ाद जानवर, पिंजरों में इंसान...
घर से बाहर सबसे छः फूट की दूरी...
हर काम स्वयं कर, 'आत्मनिर्भर' बनने की मजबूरी...
जाने कब, कहाँ, कैसे, किस रूप में virus की पकड़ में आने का डर...
और जो ज़िंदगी सबके लिए सफ़र थी, अब उस ज़िंदगी में सब कर रहे suffer...
कुछ महीनों पहले तक ये सब केवल किसी Sci-Fi मूवी का हिस्सा थे...
दो-ढाई घंटों में ख़त्म हो जाने वाला एक काल्पनिक क़िस्सा थे...
पहले सुना था, कभी-कभी क़िस्से हक़ीक़त बयाँ कर जाते हैं...
अब जान लिया, कैसे क़िस्से असल ज़िंदगी का हिस्सा बन जाते हैं...
Reel लाइफ़ में जो इतना रोमांचक और आश्चर्यचकित दिखता है...
Real लाइफ़ में वो कितना भयावह और अनिश्चित लगता है...
वो बोले,"अच्छे दिन आनेवाले हैं", हम समझे सबका जीवन स्तर उठाने वाले हैं...
किसने सोचा था, आनेवाले दिन सबको घर बैठानेवाले हैं...
कैसा होगा भविष्य अब अनुमान लगाना मुश्किल है...
सपनों और सोच से उलट-ही दिखती इंसान की मंज़िल है...
गर बच गए तो आनेवाली पुष्तों को शायद ये सिखलाएँगे...
"जितना है उसमें संतुष्ट रहो, लोभ और ईर्ष्या तुम्हें और पीछे ले जाएँगे"...
और बतायेंगे उन्हें, कैसे सबसे आगे निकलने की दौड़ में...
और सबसे ताक़तवर बनने की होड़ ने...
एक देश के स्वार्थ को सम्पूर्ण मानवजाति के विनाश का कारण बना दिया...
और उसके अभिमान ने जाने कितनों के सपनों और शरीरों को मिट्टी में मिला कर ही दम लिया...

Friday, May 15, 2020

आरज़ू फ़ुर्सत की



मुद्दत से आरज़ू थी फ़ुर्सत की, फ़ुर्सत जो आयी तो शर्तों पर...
पहले कहीं नहीं थी, फिर हर घर में, पर धूल जमीं रही परतों पर...
इम्तिहान दिए थे कयी पहले, पर 'लाक्डाउन के उपचार' का ज़िक्र कभी नहीं था पर्चों में...
वक़्त मिला बेइंतहा, इतने का करते क्या, तो जी-भर गुज़ारा बेतुके चर्चों में...
फ़ुर्सत में अमीर-ग़रीब, अक़्लमंद-मंदबुद्धि सब समान हैं, रहा फ़र्क़ नहीं कुछ दर्जों में...
और यूँ तो दुनिया पूरी बंद पड़ी है, पर कमी ज़रा ना आयी घर ख़र्चों में...
क्यूँकि दो जून की रोटी तब भी ज़रूरत थी, अब भी शामिल हैं इंसानी फ़र्ज़ों में...
पहले हम-तुम जैसे शायद कुछ थे, फ़ुर्सत ने इंसान नहीं कयी देश डुबाये क़र्ज़ों में...
इससे तो फ़ुर्सत ना आती, क़ुदरत ना क़हर यूँ बरसाती...
वक़्त ना होता पास मेरे पर बिटिया मेरी स्कूल को जाती...
संग अपने दोस्तों के खेलती, खिलती, सीखती, हँसती-मुस्कुराती..
"ये मत करो, वो मत करो", दिनभर बात-बात पर डाँट ना खाती...
फ़ुर्सत की बस आरज़ू ही अच्छी थी, असल ज़िंदगी में ये रास ना आयी...
झंडे तो कहीं गाड़े नहीं, बस खाया-पिया और तोंद कमाई...

Thursday, May 14, 2020

एक वो और एक हम

एक वो हैं जो कहते हैं, सब रिश्ते छोड़ दिए हमारे कारण, 
एक हम हैं, कि याद नहीं कोई रिश्ता और भी था हमारा, 
एक वो हैं  जिनकी नज़रें, हवा में हवाई जहाज़ पर गढ़ी हैं,
एक हम हैं, जो ज़मीन पर आलू मूली में उलझे पड़े हैं,  
एक वो हैं जो आसमान, मुठ्ठी में करने की ख्वाइश रखते हैं,
एक हम हैं, जिसने आखरी ख्वाइश क्या की थी वो भी याद नहीं, 
एक वो हैं जो दुनिया, को खुश रखने का जिगर रखते हैं, 
एक हम हैं, जो उन्हें ही दुनिया बनाये बैठे हैं |