Sunday, October 7, 2007

क्यों?

जीवन के इस खेल में सोचो क्या खोया क्या पाया तुमने..
सबकुछ पा लेने की चाह में क्या-क्या नहीं गवायां तुमने…
पास था जब तक पिता का साथ, मुमकिन लगता था हर ख़्वाब,
जो चाहा है मिल जायेगा, दिल में रहती थी यह बात…
ममता का था जो आँचल सर पर, पोछे थे आंसू जिसने हर पल…
टूट चुके हैं सब सपने उनके जिनके हर सपने में तुम थे…
तुम्हारी इच्चाओं के कारण भूल गए जो अपने सुख..
अंतर मन में झाँक कर बोलो…क्यों दिए उनको दुःख….
दोस्त समझकर जिसने तुम पर था विश्वास किया…
क्या सोचकर उसके दिल को कांच की तरह तोड़ दिया….
पग पग पर अपने जीवन के जाने कितनों का एहसान लिया…
काम हुआ जब पूरा अपना क्यों उनको पीछे छोड़ दिया….
शायद लगता है तुमको की ख़ुशी तुम्हारी सिर्फ तुमसे है…
भूल गए कैसे उनको जिनकी ज़िन्दगी तुम्ही से है….
दुखा कर इतने दिलों को कैसे खुश भला रह पाओगे…
टूटेगा जब कोई सपना…तो लौट कर कहॉ फिर जाओगे

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