आज 65 वर्षीय हुई आजादी...
65 वर्षीय आज़ाद हिंद में,
क्या चाहता है आम भारतवासी...
ना चाहे हलवा, पूरी या बोटी,
आम आदमी की ख्वाहिशें हैं बहुत ही छोटी...
चाहे बस दो वक्त की रोटी,
मिल जाए तो भरकर पेट, आ जाए निष्प्राण शरीर में जान ज़रा-सी..
65 वर्षीय आज़ाद हिंद में, क्या चाहता है आम भारतवासी...
ना चाहे विदेशी परिधान,
ना चाहे कपड़ों के थान....
चाहे बस एक जोड़ी छादन,
मिल जाए तो ढककर तन, रह जाए उसकी भी इज्ज़त ज़रा-सी...
65 वर्षीय आज़ाद हिंद में, क्या चाहता है आम भारतवासी...
ना चाहे चांदी और सोना,
ना चाहे रेशम का बिछौना...
चाहे बस एक छोटा सा कोना,
मिल जाए तो मूंदकर आँखें,आ जाए चैन की बस एक नींद ज़रा-सी....
65 वर्षीय आज़ाद हिंद में, क्या चाहता है आम भारतवासी...
ना जाने शिक्षा और आरक्षण के नफे-नुकसान,
ना ही जाने राजनीति और जन लोकपाल के विधि-विधान...
तिकोनी उसकी दुनिया जाने बस रोटी, कपड़ा और मकान,
मिल जाएँ तो भर जाए निराश मन में एक आस ज़रा-सी...
65 वर्षीय आज़ाद हिंद में, क्या चाहता है आम भारतवासी...
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