नन्ही उसकी उँगलियाँ जो भी खिलौना उठातीं हैं...
बढ़े चाव-भाव और ध्यान से उसे सीने से लगातीं हैं...
कोमल उसके होंठ उसे बेबी-बेबी कह बुलाते है...
ख़ुद को मम्मा बुलवा, स्वयं को बड़ा जान इठलाते हैं...
छोटे-छोटे उसके पाँव घर भर में धम्म-धम्म करते जाते हैं....
खेल-खिलौने, कापी-पेंसिल सब पर चढ़ आगे बड़ जाते हैं...
नया खिलौना, खेल नया, केवल तब तक मन बहलाता है...
कुछ और नया जब तक सामने नहीं आ जाता है...
चावल-दाल, रोटी-सब्ज़ी, इनकी जिभवा को कहाँ भाते हैं...
ये तो बस चौकलेट, कैंडी, मेकरोनि, मैगी ही खाना चाहते हैं...
सूने अपने घर में, इतनी रौनक़ जो ले आयी है...
गुड़िया-सी वो परी शायद पूर्व जन्म की पनुली माई है...
बच्ची की पर दादी को प्यार से गाँव वाले पनुली माई बुलाते थे...
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