Tuesday, January 30, 2018

हमारी प्यारी अम्माँ

कल लम्बी उम्र की दुआ देते थकते ना थे जो,
आज हमसे अपने लिए ये दुआ चाहते हैं.. 
कहते हैं कर देना एक पार्थना ईश्वर से मेरे लिए
अपने असहाय शरीर से आत्मा की मुक्ति माँगते हैं...
दिमाग़ कहता है, दे दूँ विदा
जाने दूँ इनको जहाँ जाना चाहते हैं...
पर मतलबी ये दिल, है जिद्द पर अड़ा,
कैसे छोड़ूँ उन्हें, हाथ सर पर जिनका सदा चाहते हैं...
कल घाव पर मरहम लगाते थे जो
आज उन हाथों पर दिखते अनगिनत घाव हैं...
आँसुओ से भरें हैं नैन मेरे तो क्या,
सर पर अब भी मेरे, ममता की छांव है...
ना शक्ति है तन में, ना उत्साह है मन में,
पर एक डोर अभी भी कहीं लटकी हुई है...
हर आहट पर सहम कर खुलती हैं आँखें,
की साँसे अभी भी कहीं अटकी हुई हैं...
दूँ कैसे विदा मैं तुझे मेरी माँ,
दर्द मेरे सारे तू पी गयी... 
तू तिल-तिल अंदर से मरती रही,
मैं समझी की तू ज़िंदगी जी गयी...
मैं दुनिया में अपनी मगन हो गयी,
तू चिंता में मेरी खोयी रही..
मैं सपनो के पीछे भागती गयी,
पर तू चैन से कभी सोयी नहीं...
माँ...स्वार्थी हूँ मैं, अपना ही सोचती हूँ,
आज भी अपने लिए ये दुआ माँगती हूँ...
जा...जाना जहाँ है तुझे,
पर बनेगी माँ हर जन्म में मेरी, तुझसे ये मैं वायदा चाहती हूँ...
जा बाबू से कहना, उनको भूली नहीं मैं..
जब होंगी अकेली, ढूँढूँगी तुम दोनो को, यहीं मैं...
रहना आस-पास मेरे,इतना तुम दोनो से चाहती हूँ...
दे त्याग इस बेबस जीवन को अब,मेरी माँ,
तेरे लिए बस अब ख़ुशी चाहती हूँ...
तेरे लिए बस अब ख़ुशी चाहती हूँ...



हमारी प्यारी अम्माँ को समर्पित. 🙏

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