Thursday, February 16, 2023

चौदह बरस


रेत जैसे हाथ से फिसल रहा है,
क्षण-क्षण कर वक्त पहर में बदल रहा है|
जाने कब पहर बने दिवस,
दिवस भी बीते बनके बरस|
देखते-देखते बरस बने दशक,
दशक बीते भी हुए बरस चार,
चौदह बरस जाने कब गुज़रे?
करते प्यार-टकरार,
यूँ ही बीतें बरसों बरस,
हे प्रभु! इतनी विनती करना स्वीकार|
वनवास की अवधी पुरी हुई,
किंतु श्री राम की स्वदेश वापसी अभी शेष है,
ये दूरी भी जल्द मिटे,
इसी कोशिश में रात दिन श्री शैलेश है |
इन बर्षों में आप सभी के साथ व शुभ कामनाओं
का भी कोटि-कोटि आभार,
स्वस्थ रहें, दीर्घायु हों आप,इच्छाएँ हों सब पूर्ण..
साथ बना रहे आप सभी का भी, हो सौभाग्य अक्षुण्ण |

 

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