Thursday, December 31, 2020

Bye Bye 2020, Hello 2021

 

 

2020 has been an exceptional and unusual year...

A year that put world's economic plans in reverse gear...

A year that seldom brought any news of cheer...

A year full of doom and gloom, tears, and fear...

Fear of fellow humans' touch...

Fear of not having enough...

Fear of losing the ones we love...

Fear of upsetting 'the one' up above...

Millions lost lives to a 'human error'...

World was scared, everyone lived in terror...

2020 was also a year of little learnings & big reminders...

It reminded us to be thankful, generous & kinder...

It gave us the time to slow down and take a pause...

It reminded us to celebrate life for no reason, no cause...

It gave us time to look within, think & introspect...

It reminded us to be humble & treat all with equal respect...

It showed us, there is not much in our control...

It reminded us to synchronize our mind, body & soul...

In short, 2020 taught lessons, some bitter some sweet...

It was a year when humans lost but was humanity's great feat...

As we get ready to bid adieu to 2020 and walk into a new year...

I sincerely thank god for keeping safe, all those we hold dear...

I hope the new year brings peace, prosperity & good health for everyone...

With a grateful & hopeful heart, I wish you a very happy Twenty-Twenty One.

 


Wednesday, July 8, 2020

क्वॉरंटीन जन्मदिन :)


तो अब जब कर लिया उम्र का एक और पड़ाव पार 🏃🏻‍♀️...
कैसा लगता है आपको जन्मदिन पर इस बार ?...” 😛
कुछ अपने मुस्कुराते 👅 हुए पूछ ही लेते थे हर साल...
घबराहट 🥴 पैदा करता था किसी के उम्र पूछ लेने का ख़्याल...
क्यूँकि ढलती उम्र की पोल खोल ही देते थे फूले बाल...🤦🏻‍♀️
तो “बहुत बढ़िया” कहकर मैं टाल देती थी आगे के सवाल...😳
पर होनी को कहाँकोईकभीकिसी भी तरह टाल सका है...
आख़िरस्वाँस और उम्र का रिश्ता तो स्वयं ईश्वर 🙏 का रचा है...
बढ़ती ⬆️ उम्र तो निशानी है जीवन कीकि स्वाँस अभी तक रुकी 🚦नहीं है... 
कि ख़्वाब 💭 कुछ अधूरे अब भी हैंकी आस अभी तक थकी 🚴🏻‍♀️नहीं है...
कि ये बाल धूप में नहीं किए सफ़ेददशक बीते तब आया इनमें ये रंग सुनहरा 👩🏻‍🦳 है...
कि ये रेखाएँ यूँ ही नहीं खिचीं चेहरे पर 👵🏻हर रेखा के पीछे छिपा राज एक गहरा है...
तो सोचा इस बरस इस सवाल को गोल नहीं घूमाऊँगी 🙅🏻‍♀️...
ये बरस ही आया है कुछ ऐसासब बोलकर 🗣 बतलाऊँगी...
इस बार कुछ डरा-डरा🙍🏻‍♀️ सा है मन मेरा...
कैसे कहूँकुछ भरा-भरा 😥 सा है मन मेरा... 
सोचा नहीं था 🤯 जो कभीवो दिन एक महामारी 🦠 ने दिखलाया है... 
पहले से सिमटती सबकी दुनिया कोअब केवल घर 🏠तक ही सिमटाया है...
करोना पॉज़िटिव और नेगेटिवइंसानो में अब बस ये दो खंड हो गये...
जीवन और मृत्यु दोनों हीइस परिस्थिति 😷 में तो दण्ड हो गए...
ना सबके साथ मिलकर ख़ुशी मना 💃🏻सकते हैं...
ना किसी के दुःख में शामिल होने जा 🚶🏻‍♀️सकते हैं...
ज़रा बताइये ये डर-डर कर जीना भी कोई जीना है लल्लू?
करोना काल में ज़िंदगी हो गयी बाबाजी का ठुल्लू 👎 
ऐसे में क्या तो जन्मदिन 🤷🏻‍♀️ और कैसा उसका जश्न...
स्वाँस रही तो अगले बरस फिर आएगा ये बारये लग्न 🥳...
फिर नव ऊर्जा से सोचूँगीउम्र को अपनी कैसे छिपाऊँ 🤓...
 ...

Tuesday, May 19, 2020

गर बच गए तो आनेवाली पुष्तों को शायद ये सिखलाएँगे...

सड़कें सुनसान, शहर विरान...
आज़ाद जानवर, पिंजरों में इंसान...
घर से बाहर सबसे छः फूट की दूरी...
हर काम स्वयं कर, 'आत्मनिर्भर' बनने की मजबूरी...
जाने कब, कहाँ, कैसे, किस रूप में virus की पकड़ में आने का डर...
और जो ज़िंदगी सबके लिए सफ़र थी, अब उस ज़िंदगी में सब कर रहे suffer...
कुछ महीनों पहले तक ये सब केवल किसी Sci-Fi मूवी का हिस्सा थे...
दो-ढाई घंटों में ख़त्म हो जाने वाला एक काल्पनिक क़िस्सा थे...
पहले सुना था, कभी-कभी क़िस्से हक़ीक़त बयाँ कर जाते हैं...
अब जान लिया, कैसे क़िस्से असल ज़िंदगी का हिस्सा बन जाते हैं...
Reel लाइफ़ में जो इतना रोमांचक और आश्चर्यचकित दिखता है...
Real लाइफ़ में वो कितना भयावह और अनिश्चित लगता है...
वो बोले,"अच्छे दिन आनेवाले हैं", हम समझे सबका जीवन स्तर उठाने वाले हैं...
किसने सोचा था, आनेवाले दिन सबको घर बैठानेवाले हैं...
कैसा होगा भविष्य अब अनुमान लगाना मुश्किल है...
सपनों और सोच से उलट-ही दिखती इंसान की मंज़िल है...
गर बच गए तो आनेवाली पुष्तों को शायद ये सिखलाएँगे...
"जितना है उसमें संतुष्ट रहो, लोभ और ईर्ष्या तुम्हें और पीछे ले जाएँगे"...
और बतायेंगे उन्हें, कैसे सबसे आगे निकलने की दौड़ में...
और सबसे ताक़तवर बनने की होड़ ने...
एक देश के स्वार्थ को सम्पूर्ण मानवजाति के विनाश का कारण बना दिया...
और उसके अभिमान ने जाने कितनों के सपनों और शरीरों को मिट्टी में मिला कर ही दम लिया...

Friday, May 15, 2020

आरज़ू फ़ुर्सत की



मुद्दत से आरज़ू थी फ़ुर्सत की, फ़ुर्सत जो आयी तो शर्तों पर...
पहले कहीं नहीं थी, फिर हर घर में, पर धूल जमीं रही परतों पर...
इम्तिहान दिए थे कयी पहले, पर 'लाक्डाउन के उपचार' का ज़िक्र कभी नहीं था पर्चों में...
वक़्त मिला बेइंतहा, इतने का करते क्या, तो जी-भर गुज़ारा बेतुके चर्चों में...
फ़ुर्सत में अमीर-ग़रीब, अक़्लमंद-मंदबुद्धि सब समान हैं, रहा फ़र्क़ नहीं कुछ दर्जों में...
और यूँ तो दुनिया पूरी बंद पड़ी है, पर कमी ज़रा ना आयी घर ख़र्चों में...
क्यूँकि दो जून की रोटी तब भी ज़रूरत थी, अब भी शामिल हैं इंसानी फ़र्ज़ों में...
पहले हम-तुम जैसे शायद कुछ थे, फ़ुर्सत ने इंसान नहीं कयी देश डुबाये क़र्ज़ों में...
इससे तो फ़ुर्सत ना आती, क़ुदरत ना क़हर यूँ बरसाती...
वक़्त ना होता पास मेरे पर बिटिया मेरी स्कूल को जाती...
संग अपने दोस्तों के खेलती, खिलती, सीखती, हँसती-मुस्कुराती..
"ये मत करो, वो मत करो", दिनभर बात-बात पर डाँट ना खाती...
फ़ुर्सत की बस आरज़ू ही अच्छी थी, असल ज़िंदगी में ये रास ना आयी...
झंडे तो कहीं गाड़े नहीं, बस खाया-पिया और तोंद कमाई...

Thursday, May 14, 2020

एक वो और एक हम

एक वो हैं जो कहते हैं, सब रिश्ते छोड़ दिए हमारे कारण, 
एक हम हैं, कि याद नहीं कोई रिश्ता और भी था हमारा, 
एक वो हैं  जिनकी नज़रें, हवा में हवाई जहाज़ पर गढ़ी हैं,
एक हम हैं, जो ज़मीन पर आलू मूली में उलझे पड़े हैं,  
एक वो हैं जो आसमान, मुठ्ठी में करने की ख्वाइश रखते हैं,
एक हम हैं, जिसने आखरी ख्वाइश क्या की थी वो भी याद नहीं, 
एक वो हैं जो दुनिया, को खुश रखने का जिगर रखते हैं, 
एक हम हैं, जो उन्हें ही दुनिया बनाये बैठे हैं |  

Sunday, March 29, 2020

कोरोना का क़हर

दुनिया पूरी बैठायी घर मेंएक वाइरस ने ऐसा चक्र दिया घुमाए...
विश्व भर में घूम-घूमकेपूरे विश्व को एक-सा दिया बनाए....
पलक झपकते बदली दुनियादिमाग़ की बत्ती अब भी टिमटिमाए...
ये क्या हुआक्यूँ हुआसोचूँ बार-बारपर कुछ भी समझ ना आए...
कोई तो बताएएक छोटे-से वाइरस मेंइतनी शक्ति कहाँ से आए...
विश्व के बुद्धिजीवों और वैज्ञानिकों को अपने आगे दिया झुकाए...
सशक्त-कमज़ोरसभी डरे हैंसबको घर में दिया छुपाए...
अमीर को प्राणों का डर हैगरीब को पेट काऔर ये डर दिन-दिन बढ़ता ही जाए...
डरीसहमीइस दुनिया को अब कौन ये समझाए...
जब बोए पेड़ बबूल केतो आम कहाँ से खाये??
पेड़ काट इमारतें बनायीनदियाँ काट बांध दिए बनाए...
थल-जल बाँट मन ना भरातो मंदिर-मस्जिद खड़े कराए...
खुद को बढ़ा बनाने मेंदुनिया इतनी ग़ुम थी हाय...
उससे भी ऊपर है जोदिया था मन-मस्तिष्क से भुलाए....
अब दुनिया सारी रुक ही गयी हैमानो ऊपर वाले ने Pause बटन दिया दबाय,
झूठी ख़ुशियों में मशगूल दुनिया कोसत्य का दर्पण दिया दिखाए...
जहां भी देखो खबर वही हैबीमारों की गिनती बढ़ती-ही जाए...
दवा मिली ना दुआ लगी नज़र में आता अब तक कोई उपाय... 
बाहर निकलने के ख़्याल सेदिल की धड़कन बड़-सी जाए...
साबुन और सेनीटाईज़र से हाथ फट गएपर इन्फ़ेक्शन का डर कम ना हो पाए...
किसी ने खोया अपना प्याराकिसी ने रोज़ी-रोटी दी गँवाये...
पर सोसियल मीडिया की crazy दुनिया कोइसमें भी humor देता दिखाए...
अलाद्दीन का चिराग़ आज जो मेरे हाथ कहीं लग जाए...
पहली ख्वाहिश में दूर करूँ दुनिया से सभी दुःखकष्ट और यातनाएँ...
दूजी में मांगु हर इंसान के लिए एक समान सुख सुविधाएँ...
तीजी में माँग लूँ सबकी लम्बी आयुसब हंसते हंसते ईश्वर घर जाएँ...