दुनिया पूरी बैठायी घर में, एक वाइरस ने ऐसा चक्र दिया घुमाए...
विश्व भर में घूम-घूमके, पूरे विश्व को एक-सा दिया बनाए....
पलक झपकते बदली दुनिया, दिमाग़ की बत्ती अब भी टिमटिमाए...
ये क्या हुआ, क्यूँ हुआ, सोचूँ बार-बार, पर कुछ भी समझ ना आए...
कोई तो बताए, एक छोटे-से वाइरस में, इतनी शक्ति कहाँ से आए...
विश्व के बुद्धिजीवों और वैज्ञानिकों को अपने आगे दिया झुकाए...
सशक्त-कमज़ोर, सभी डरे हैं, सबको घर में दिया छुपाए...
अमीर को प्राणों का डर है, गरीब को पेट का, और ये डर दिन-दिन बढ़ता ही जाए...
डरी- सहमी, इस दुनिया को अब कौन ये समझाए...
जब बोए पेड़ बबूल के, तो आम कहाँ से खाये??
पेड़ काट इमारतें बनायी, नदियाँ काट बांध दिए बनाए...
थल-जल बाँट मन ना भरा, तो मंदिर-मस्जिद खड़े कराए...
खुद को बढ़ा बनाने में, दुनिया इतनी ग़ुम थी हाय...
उससे भी ऊपर है जो, दिया था मन-मस्तिष्क से भुलाए....
अब दुनिया सारी रुक ही गयी है, मानो ऊपर वाले ने Pause बटन दिया दबाय,
झूठी ख़ुशियों में मशगूल दुनिया को, सत्य का दर्पण दिया दिखाए...
जहां भी देखो खबर वही है, बीमारों की गिनती बढ़ती-ही जाए...
दवा मिली ना दुआ लगी, न नज़र में आता अब तक कोई उपाय...
बाहर निकलने के ख़्याल से, दिल की धड़कन बड़-सी जाए...
साबुन और सेनीटाईज़र से हाथ फट गए, पर इन्फ़ेक्शन का डर कम ना हो पाए...
किसी ने खोया अपना प्यारा, किसी ने रोज़ी-रोटी दी गँवाये...
पर सोसियल मीडिया की crazy दुनिया को, इसमें भी humor देता दिखाए...
अलाद्दीन का चिराग़ आज जो मेरे हाथ कहीं लग जाए...
पहली ख्वाहिश में दूर करूँ दुनिया से सभी दुःख, कष्ट और यातनाएँ...
दूजी में मांगु हर इंसान के लिए एक समान सुख सुविधाएँ...
तीजी में माँग लूँ सबकी लम्बी आयु, सब हंसते हंसते ईश्वर घर जाएँ...
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