सुना आपने? ज़माना बदल रहा है, कहते हैं ज़माने के साथ चलना ही समझदारी है...
चाल-ढाल, तौर-तरीक़े, रवैया-नज़रिया, सब बदल रहा है, बदल रही जैसे दुनिया सारी की सारी है...
अब जी में आए वैसा ही करते हैं जनाब, हो गयी “सहूलियत” से साझेदारी है...
ईश्वर की कृपा से भरा-पूरा परिवार है, भाई से स्नेह-दुलार है, बहना भी हमको प्यारी है...
तीज-त्योहार पर बात हो जाती है, क्यूँकि शुभकामनाएँ देना सामाजिक ज़िम्मेदारी है....
मिलने का वक़्त कहाँ है साहब...”सहूलियत” की रिश्तेदारी है
दोस्त थे हमने बहुत बनाये, संग जिनके बचपन और जवानी में कई शाम गुज़ारी हैं...
अब जन्मदिन पर मेसिज कर लेते हैं, याद दिलाने के लिए फ़ेसबूक और ट्विटर के आभारी हैं...
वक़्त बेशक़ीमती है शाहब , “सहूलियत” की दोस्ती-यारी है....
पड़ोसी भी हैं कुछ-एक हमारे, जिनके घर से जुड़ी घर की एक दीवार हमारी है...
आते-जाते, कभी-कभी चौखट से ही दुआ-सलाम हो जाती है , रोज़ की कहाँ जवाब दारी है....
अपने-अपने घर में ख़ुश हैं, केवल “सहूलियत” की पहचान हमारी है...
#सहूलियत #रिश्ते-नाते #भाई-बहन #दोस्ती-यारी
No comments:
Post a Comment